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कविता

कोसी गाती

बुद्धिनाथ मिश्र


कोसी गाती, कमला गाती
काली गाती है
नदियों के संग धरती की
हरियाली गाती है।

फागुन के दिन चार और
बाकी दिन सावन के
ले-देकर हिस्से में आया
यही बुझावन के
अपना दुख है बारहमासा
सुख तो प्राती है।

झिझिया का वह नाच
बसा है जिसके प्राणों में
चारों धाम बसा उसका
खेतो-खलिहानों में
महुआ घटवारिन लुक-छिपकर
उसे बुलाती है।

गाँवों में पुरवा-पछवा है
दिल है सीने में
क्या रक्खा है शहरों में
तिल-तिलकर जीने में
दिशाशूल है यहाँ
वहाँ तो साढ़ेसाती है।

 


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